Gujarat Riots 2002 [Hindi] | गुजरात में 2002 में हुए दंगों के मामले में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। जाकिया जाफरी ने यह अर्जी दाखिल की थी।
SC on Zakia Jafri Plea: 2002 गुजरात दंगा केस में ज़किया जाफरी की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. ज़किया ने दंगे की साज़िश के आरोप से तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को मुक्त करने वाली SIT की क्लोज़र रिपोर्ट को चुनौती दी थी. इससे पहले 2012 में मजिस्ट्रेट और 2017 में हाई कोर्ट इस रिपोर्ट को मंजूरी दे चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि याचिका में तथ्य नहीं हैं.
क्या कहा अदालत ने
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने एसआईटी की मामले को बंद करने संबंधी रिपोर्ट के खिलाफ दायर जाकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने के, विशेष मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखा. शीर्ष अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि जाफरी की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.
कौन हैं जकिया जाफरी
जाकिया गुजरात में 2002 के दंगों में मारे गए, कांग्रेस के सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं. एहसान जाफरी 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए 68 लोगों में शामिल थे. इससे एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोग मारे गए थे. इन घटनाओं के बाद ही गुजरात में दंगे भड़क गए थे.
2018 में खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ एक अपील गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष भी लाई गई, जिसने 5 अक्टूबर 2017 को इसे ठुकरा दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओें ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई 14 दिनों तक चली और याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने किया। राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी एसआईटी की ओर से पेश हुए।
Gujarat Riots 2002 के दौरान मारे गए 1000 से अधिक लोग
गोधरा ट्रेन जलाने की घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 लोगों के मारे जाने के एक दिन बाद दंगे भड़क उठे थे। दंगों के दौरान 1000 से अधिक लोग मारे गए। एहसान जाफरी अहमदाबाद की गुलबर्गा सोसाइटी में 28 फरवरी, 2002 को ट्रेन जलने की घटना के एक दिन बाद मारे गए 69 लोगों में से एक थे।
2012 में SIT ने दाखिल की थी क्लोजर रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद SIT ने दंगों की व्यापक साज़िश के पहलू की जांच की. मुख्यमंत्री मोदी से भी अपने कार्यालय में बुला कर पूछताछ की. 2012 में SIT ने मजिस्ट्रेट के पास क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दी. SIT ने मोदी समेत 63 लोगों के साज़िश में हिस्सेदार होने के आरोप को गलत पाया. ज़किया ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस रिपोर्ट के खिलाफ प्रोटेस्ट पेटिशन दाखिल की। इसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया. 2017 में गुजरात हाई कोर्ट ने भी मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया.
Gujarat Riots 2002 [Hindi] | SC बेंच ने कहा- अपील आदेश देने योग्य नहीं
मामले की सुनवाई के दौरान ज़किया की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बहस की थी. उन्होंने SIT पर सबूतों की अनदेखी का आरोप लगाया था. वहीं SIT के लिए मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा था. रोहतगी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता मामले में पीएम मोदी का नाम जुड़ा होने के चलते इसे खींचते रहने की कोशिश कर रहे हैं. रोहतगी ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल ठगते हुए कहा था, “अगर इन्हें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई जांच पर भी भरोसा नहीं है, तो क्या अब स्कॉटलैंड यार्ड (ब्रिटिश पुलिस मुख्यालय) की जांच टीम को बुलाने की मांग करना चाहते हैं?”
मामले पर फैसला आज जस्टिस ए एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी टी रविकुमार की बेंच ने फैसला दिया. बेंच ने कहा कि अपील आदेश देने योग्य नहीं है. इस टिप्पणी के साथ ज़किया की अपील को कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने माना है कि मामले में मजिस्ट्रेट का आदेश सही था. उन्होंने सभी पहलुओं को देखने के बाद उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए आदेश दिया था.
तीस्ता सीतलवाड़ पर कढ़ाई को खौलाते रहने का आरोप लगाया
गुजरात सरकार और SIT ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर कड़ाही को खौलाते रहने का आरोप लगाया है. उन्होंने तीस्ता पर NGO को मिले रुपयों में गड़बड़ी के आरोप लगाते हुए मामले को उछालते रहने का आरोप लगाया है. SIT की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच को बताया था. वास्तव में कुछ ने कहा कि यह स्क्रिप्ट का एक हिस्सा था.SIT को FIR या चार्जशीट दर्ज करने में कोई सार नहीं मिला. SIT ने उन 9 में से तीन अलग-अलग अदालतों में स्टिंग सामग्री अदालत को दी थी. एक विशेष अदालत ने स्टिंग की सामग्री को भी खारिज कर दिया था .
Gujarat Riots 2002 पर एसआईटी की दलील
एसआईटी ने कहा था कि इस मामले में गहन छानबीन हुई और मामले में किसी को बचाया नहीं गया। सुप्रीम कोर्ट में एसआईटी की ओर से मुकुल रोहतगी पेश हुए और उन्होंने दलील दी थी कि किसी को नहीं बचाया गया और पूरी छानबीन गहन तरीके से हुई है। छानबीन पूरी दक्षता से की गई। दंगे के दौरान मारे गए एहसास जाफरी की पत्नी का आरोप है कि इस मामले में व्यापक साजिश की गई थी। एसआईटी की ओर से मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी कि छानबीन गहन तरीके से की गई और कुल 275 लोगों का परीक्षण हुआ था और ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे कि इस मामले में व्यापक साजिश की बात सामने आई हो जैसा कि जाकिया जाफरी का आरोप है।
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मुकुल रोहतगी ने एसआईटी की ओर से दलील पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि यह कहना कतई सही नहीं होगा कि एसआईटी ने अपना काम नहीं किया। राज्य अथॉरिटी ने समय पर कदम नहीं उठाया, इस आरोप पर रोहतगी ने जवाब देते हुए कहा कि हिंसा 28 फरवरी को शुरू हुई थी और उसी दिन तत्कालीन सीएम ने मीटिंग बुलाई और फैसला लिया गया कि आर्मी को बुलाया जाए।
टेप की सत्यता पर कोई विवाद नहीं
एसआईटी द्वारा कोर्ट में कहा गया कि मामले की सुनवाई चल रही थी. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया. साल 2009 में गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका में चूंकि एसआईटी पहले से ही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया के मामले की जांच के लिए भी कहा था. हमें शिकायत की जांच के लिए नियुक्त किया गया था, क्योंकि राज्य पुलिस ने पहले ही कई पूरक चार्जशीट के साथ 9 मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी.
जब एसआईटी ने कार्यभार संभाला तो उन्होंने कई चार्जशीट और कई आरोपी जोड़े. फिर तहलका टेप सामने आया. टेप की सत्यता पर कोई विवाद नहीं है. लेकिन एसआईटी ने पाया कि टेप की सामग्री में स्टिंग ऑपरेशन आदि से लेकर खेतान के सामने दिए गए बयानों से अविश्वास पैदा हुआ है.
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