इस बार Khalsa Sikh guru gobind singh (jayanti) birthday 2021 व lohri 2021 एक साथ ही मनाई जाएगी, जिसकी date 13 january 2019 है via Hindi Fresh News Blog india.
सिख धर्म (Sikh Religion) के दसवें बादशाह गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) सिख धर्म के आखिरी गुरु हुए थे । गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) का जन्म 22 दिसम्बर, सन 1666 को बिहार के पटना साहिब में हुआ था । गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन का नाम गोविंद राय (Govind Rai) था, गुरु गोबिंद सिंह जी 9 वर्ष की उम्र में ही गुरु की उपाधि पर विराजमान हो गए थे । गोविंद राय अपने माता-पिता के इकलौते बेटे थे ।
Guru Gobind singh jayanti: गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी
गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता का नाम गुरु तेग बहादुर सिंह जी (Guru Teg Bahadur Singh) ओर माता नाम माता गुजरी था । गुरु गोबिंद सिंह जी अपने जन्म के चार वर्ष बाद सन 1670 में अपने परिवार के साथ पंजाब स्थित अपने घर पर लौट आये और दो वर्ष तक वही पर रहे । सन 1972 गुरु गोबिंद सिंह जी वह चक्क ननकी (Anandpur Sahib) चले गए थे । जो हिमालय की निचली घाटी में स्थित है । वही पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी शिक्षा लेनी शुरू करि थी , बचपन में ही उन्हें फारसी और संस्कृत के साथ सैन्य शिक्षा भी दी गई थी। गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्म के बाद उनके पिता ने चक्क नानकी शहर की स्थापना करि थी । जिसे आज हम आनंदपुर साहिब (Anandpur Sahib) के नाम से जाना जाता है । दरसल इस स्थान,शहर को गुरुतेग बहादुर जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्म से एक वर्ष पहले ही सन 1665 में उन्होंने बिलासपुर (कहलूर) के शासक से ख़रीदा था ।
Guru Gobind Singh Jayanti 2021 Special
अपने पिता गुरुतेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को गुरु गोबिंद गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें गुरु गुरु बने । जिस प्रकार वह 9 वर्ष की उम्र में ही सिख धर्म के दसवें गुरु के रूप में सबके समक्ष आये । गुरु गोबिंद सिंह जी की सिर्फ 11 साल की उम्र में उनकी शादी माता जितो से हो गयी थी उन्हें माता सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे। गुरु गोविंद सिंह की एक और पत्नी थीं जिसका नाम माता साहिब दीवान था । गुरु गोविंद सिंह एक महान योद्धा के साथ-साथ एक कवि भी हुए थे ।
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सन 1699 में गुरु गोविंद सिंह जी ने बैसाखी के दिन अपने 5 शिष्यों को लेकर ही खालसा पंथ की स्थापना करि थी । सिख धर्म में गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Govind Singh) को शौर्य और अध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक के तौर पर भी माना जाता है । उन्होंने ही जाप साहिब की रचना करि । गुरु गोविंद सिंह (Guru Govind Singh) जी को शौर्य और बलिदान के लिए भी जाना जाता है । जीवन में आगे बढ़ने के लिए गुरु गोविंद सिंह ने लोगों को शिक्षा देते थे ।
जानिये सिख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरु नानक जी के बारे में विस्तार से
गुरु गोबिंद जी आनंदपुर साहब में आध्यात्मिक ज्ञान लोगो को बताया करते थे । वह मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का संदेश देते थे । वह हमेशा लोग वर्ण, रंग, जाति, संप्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता के साथ रहने का संदेश दिया करते थे , गुरु गोबिंद सिंह जी एक निडर योद्धा होने के साथ-साथ कवि ओर आध्यात्मिक नेता भी थे। कवि तौर पर अपनी पहचान रखने वाले गुरु गोविंद सिंह जी विद्वानों के संरक्षक भी थे । उनके दरबार में 52 कवियों और लेखकों की मौजूदगी हमेशा रहा करती थी । इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ के नाम से भी जाना जाता है । गुरु गोविंद सिंह जी हमेशा प्रेम, एकता, समानता और भाईचारे के पक्षधर रहे थे।
गुरु गोविंद सिंह जी हमेशा कहा करते थे कि धर्म का मार्ग ही सत्य का मार्ग है, और सत्य कभी नहीं हारता उसकी सदैव ही विजय होती है. गुरु गोविंद सिंह जी ने ही दशम ग्रन्थ की रचना करि ओर उन्होंने ही पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा गुरु ग्रन्थ साहिब जी को गुरु रूप में सुशोभित भी किया था । बिचित्र नाटक को गुरु गोविंद सिंह जी की आत्मकथा माना जाता है । यही से उनके जीवन के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है । इसे ही दसम ग्रन्थ का एक भाग कहा जाता है । उन्होने मुगलों और उनके खास सहयोगियों के साथ 14 युद्ध लड़े, जिसमे उन्होंने अपने दो बेटो को खो दिया|
धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें “सर्वस्वदानी” भी कहा जाता है| इसके अलावा आज वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि और कई नामो, उपनामों और उपाधियों से भी जाने जाते हैं ।
‘सवा सवा लाख पे एक को चढ़ाऊंगा, गुरु गोविंद सिंह निज नाम तब कहाऊंगा।‘
सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी की वीरता और पराक्रम को यह पंक्तियां बहुत ही अच्छी तरह दर्शाती हैं। कि वह कितने निडर योद्धा थे। गुरु गोविंद सिंह जी को त्याग और वीरता की मूर्ति भी माना जाता है, त्याग की इसलिए क्योंकि उन्हें सर्वस्वदनी कहा जाता है । युद्ध के दौरान अपने दो बेटों ओर परिवार को भी खो दिया । और वीरता की मूर्ति इसलिए कहा जाता है । वह औरंगजेब के अन्याय के सामने नही झुके ओर वीरता के साथ उसका सामना किया ।
गुरु जी ने एक नारा दिया था – वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह. … गुरु गोविंद सिंह गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु 7 अक्टूबर सन् 1708 ई. को हो गयी थी ।
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