Khashaba Dadasaheb Jadhav [Hindi]: कुश्ती के खेल में ओलंपिक पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले पहलवान खाशाबा दादासाहेब जाधव का आज 97वां जन्मदिन है. उनकी जयंती के मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें खास श्रद्धांजलि दी है.
कोल्हापुर के महाराजा
हालांकि जाधव केवल 5.5 फीट लंबे थे, लेकिन उनके कुशल दृष्टिकोण और चपलता ने उन्हें अपने हाई स्कूल के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में से एक बना दिया. अपने पिता और पेशेवर पहलवानों से आगे के प्रशिक्षण के साथ, जाधव ने कई खिताब जीते. उन्होंने विशेष रूप से ढाका में बहुत अच्छी कुश्ती लड़ी थी. 1940 के दशक में उनकी सफलता ने कोल्हापुर के महाराजा का ध्यान आकर्षित किया. राजा राम कॉलेज में कुश्ती मैच जीतने के बाद कोल्हापुर के महाराजा ने लंदन में 1948 के ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए जाधव को भुगतान करने का फैसला किया.
Khashaba Dadasaheb Jadhav का जीवन परिचय
खाशाबा का जन्म सतारा ज़िला, महाराष्ट्र में कराड तहसील के गोलेश्वर नामक छोटे से गाँव में मराठा परिवार में 15 जनवरी 1926 को हुआ था। उनकी माँ का नाम ‘पुतलीबाई’ था और उनके पिता को सभी ‘दादासाहब’ कहते थे। खाशाबा सभी भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनके घर में खेती होती थी। उनके पिता कृषक थे तथा पहलवानी भी करते थे। वे कुश्ती खेलते थे। खेत से घर आने पर वे कुश्ती कैसे खेली जाए इसका प्रशिक्षण खाशाबा को देते थे। कुश्ती का प्रारम्भिक प्रशिक्षण उन्हें घर पर ही मिला।
नाम ( Name) | खाशाबा जाधव |
असली नाम (Other Name ) | खशाबा दादासाहेब जाधव |
निक नेम (Nick Name ) | पॉकेट डायनेमो एवं के.डी |
पेशा (Profession) | भारतीय पहलवान खिलाड़ी |
प्रसिद्धी का कारण (Famous For ) | वह ओलंपिक में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले एथलीट थे । |
जन्म (Birth) | 15 जनवरी 1926 |
उम्र (Age ) | 58 साल (मृत्यु के समय ) |
जन्म स्थान (Birth Place) | सतारा जिला , बॉम्बे प्रेसीडेंसी , ब्रिटिश भारत |
मृत्यु की तारीख (Date of Death) | 14 अगस्त 1984 |
मृत्यु की जगह (Place of Death) | करड ,महाराष्ट्र , भारत |
मृत्यु की वजह (Reason of Death ) | सड़क दुर्घटना |
गृहनगर (Hometown) | सतारा जिला , बॉम्बे प्रेसीडेंसी , ब्रिटिश भारत |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
कद (Height) | 5 फीट 6 इंच |
वजन (Weight) | 54 किलोग्राम |
कोच (Coach ) | रीस गार्डनर |
पेशा (Occupation) | भारतीय एथलीट |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
खाशाबा जाधव का कुश्ती करियर
उनके पिता दादासाहेब एक कुश्ती कोच थे और उन्होंने पाँच साल की उम्र में खशाबा को कुश्ती में दीक्षित किया। कॉलेज में उनके कुश्ती गुरु बाबूराव बलावडे और बेलापुरी गुरुजी थे। कुश्ती में उनकी सफलता ने उन्हें अच्छे ग्रेड प्राप्त करने से नहीं रोका। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस पर ओलंपिक में तिरंगा झंडा फहराने का संकल्प लिया।
- साल 1948 में अपने कुश्ती करियर की शुरुआत करते हुए, वह पहली बार 1948 के लंदन ओलंपिक में सुर्खियों में आए, जब वह फ्लाईवेट वर्ग में 6वें स्थान पर रहे। वह 1948 तक व्यक्तिगत श्रेणी में इतना ऊंचा स्थान हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।
- एक चटाई पर कुश्ती के साथ-साथ कुश्ती के अंतरराष्ट्रीय नियमों के लिए नए होने के बावजूद, जाधव का 6 वां स्थान उस समय कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी।
- अगले चार वर्षों के लिए, जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक के लिए और भी कठिन प्रशिक्षण लिया, जहाँ उन्होंने एक भार वर्ग में सुधार किया और बैंटमवेट वर्ग (57 किग्रा) में भाग लिया, जिसमें चौबीस विभिन्न देशों के पहलवानों ने भाग लिया।
- सेमीफाइनल में हारने से पहले उन्होंने मैक्सिको, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों के पहलवानों को हराया, लेकिन कांस्य पदक जीतने के लिए उन्होंने मजबूत वापसी की, जिसने उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता बना दिया।
1948 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में खाशाबा जाधव (1948 Summer Olympics)
जाधव को बड़े मंच का पहला अनुभव 1948 के लंदन ओलंपिक में हुआ था ; उनकी यात्रा कोल्हापुर के महाराजा द्वारा वित्त पोषित की गई थी । लंदन में रहने के दौरान, उन्हें रीस गार्डनर द्वारा ट्रेनिंग दी गई थी,जो संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व लाइटवेट विश्व चैंपियन थे।
यह जाधव के गुरु गार्डनर की ट्रेनिंग का कमाल था जिन्होंने मैट पर कुश्ती से अपरिचित होने के बावजूद जाधव को फ्लाईवेट वर्ग में छठा स्थान दिया। उन्होंने बाउट के पहले कुछ मिनटों में ऑस्ट्रेलियाई पहलवान बर्ट हैरिस को हराकर दर्शकों को चौंका दिया । वह अमेरिका के बिली जेर्निगन को हराने के लिए गए, लेकिन खेलों से बाहर होने के लिए ईरान के मंसूर रायसी से हार गए।
Khashaba Dadasaheb Jadhav के पुरस्कार
- उन्हें दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों में मशाल दौड़ का हिस्सा बनाकर सम्मानित किया गया।
- महाराष्ट्र सरकार ने 1992-1993 में मरणोपरांत छत्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया।
- 2001 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 2010 दिल्ली कॉमन वेल्थ गेम्स के लिए नव-निर्मित कुश्ती स्थल को उनकी उपलब्धि के लिए नामित किया गया था।
Khashaba Dadasaheb Jadhav [Hindi]: चूक गए थे गोल्ड मेडल से
- दादासाहब जाधव ने 1948 में पहली बार ओलिंपिक में भाग लिया था।
- जाधव ने ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता, लेकिन वो गोल्ड जीतने से चूक गए थे।
- दरअसल, वो यहां मैट सरफेस पर एडजस्ट नहीं कर पा रहे थे।
- इसके अलावा नियम के खिलाफ यहां लगातार दो बाउट रखवाए गए थे।
- जाधव के गोल्ड नहीं जीत पाने का एक कारण ये भी था।
खाशाबा जाधव की मृत्यु
साल 1955 में, वह एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में पुलिस बल में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने पुलिस विभाग के भीतर आयोजित कई प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की और एक खेल प्रशिक्षक के रूप में राष्ट्रीय कर्तव्यों का भी पालन किया।
Khashaba Dadasaheb Jadhav [Hindi]: सत्ताईस साल तक पुलिस विभाग की सेवा करने और सहायक के रूप में सेवानिवृत्त होने के बावजूद। पुलिस कमिश्नर जाधव को बाद में अपने जीवन में पेंशन के लिए संघर्ष करना पड़ा। वर्षों तक, उन्हें खेल महासंघ द्वारा उपेक्षित किया गया और उन्हें अपने जीवन के अंतिम चरण गरीबी में गुजारने पड़े।
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साल 1984 में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, उनकी पत्नी को किसी भी ओर से कोई सहायता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
पुलिस डिपार्टमेंट में की स्पोर्ट्स कोटे की शुरुआत
- 1955 में जाधव को मुंबई पुलिस में स्पोर्ट्स कोटे से सब-इंस्पेक्टर की नौकरी मिली। कई सालों तक वे इसी पोस्ट पर बने रहे।
- 1982 में उन्हें छह महीने के लिए असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर का पद मिला था।
- पुलिस डिपार्टमेंट में स्पोर्ट्स कोटा जाधव के ओलिंपिक में मेडल जीतने के बाद ही शुरू हुआ था।
- आज भी पुलिस में कई लोगों की भर्ती इस कोटे से होती है।
- उन्होंने 25 सालों तक पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी की, लेकिन साथ काम करने वालों को पता नहीं चला कि वो ओलिंपिक चैम्पियन हैं।
- रिटायरमेंट के दो साल बाद 1984 में उनकी एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी।
- दादासाहब के नाम पर दिल्ली के इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में रेसलिंग स्टेडियम भी है।
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कोल्हापुर महाराज ने उठाया था पहले ओलिंपिक का खर्च
- दादासाहब जाधव ने 1948 में पहली बार ओलिंपिक में हिस्सा लिया। तब कोल्हापुर के महाराजा ने उनकी लंदन यात्रा का खर्चा उठाया था।
- हालांकि, तब वह कोई भी कुश्ती का मैच नहीं जीत पाए थे।
- इसके बाद उन्होंने 1952 ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया, लेकिन यहां जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।
- उन्होंने इसके लिए लोगों से पैसे मांगे, चंदा इकट्ठा किया। घरवालों ने भी पैसे जुटाने में उनकी मदद की।
- राज्य सरकार से बार-बार मदद मांगने के बाद उन्हें चार हजार रुपए की राशि मिली।
- बाकी के पैसों का इंतजाम करने के लिए उन्हें अपना घर, कॉलेज के प्रिंसिपल के पास गिरवी रखना पड़ा था
Google डूडल उस पहलवान को याद करता है आज 15 जनवरी के मौके पर Google डूडल उस पहलवान को याद करता है, जिसे प्यार से ‘पॉकेट डायनमो’ के नाम से जाना जाता है। जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में जर्मनी, मैक्सिको और कनाडा के खिलाड़ियों को हराकर कांस्य पदक हासिल किया। आज भारत पहलवानी में कई पदक जीत चुका है। गोल्ड मेडल की तलाश अभी भी जारी है। अधिकतर पदक हरियाणा से आए हैं। लेकिन जाधव का ताल्लुक उत्तर भारत से नहीं था। वे महाराष्ट्र के एक गांव सतारा में जन्मे थे।

Khashaba Dadasaheb Jadhav [Hindi]: के दिलचस्प तथ्य [Facts]:
- KD Jadhav स्वतंत्रता भारत के पहले Individual Medalist थे।
- ये एक मात्र ऐसे खिलाडी थे जिन्हें पद्म पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ।
- इन्होने 5 साल की उम्र में ही कुस्ती की Training शुरू कर दी थी।
- 8 साल की उम्र में इन्होने अपने Local Wrestling Champion को सिर्फ 2 Minute मी ही हरा दिया।
- पोलिस विभाग में एक अच्छे Post पर होने के बाबजूद इनके जीवन का अंतिम चरण गरीबी में बीता।
तैराक और धावक भी थे जाधव
हालांकि, 1952 से पहले ही कोल्हापुर के महाराज की नजर इस पहलवान की प्रतिभा पर पड़ी थी। उन्होंने लंदन में 1948 के ओलंपिक खेलों में जाधव की भागीदारी को निधि देने का फैसला किया। अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती नियमों के अभ्यस्त नहीं होने और अत्यधिक अनुभवी पहलवानों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बावजूद, जाधव छठे स्थान पर रहे, जो उस समय के दौरान एक भारतीय पहलवान के लिए सर्वोच्च स्थान था। बाद में जाधव स्वतंत्रता के बाद ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक हासिल करने वाले पहले भारतीय एथलीट बने। जाधव एक अच्छे तैराक और धावक भी थे।
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