UU Lalit [Hindi] | जस्टिस उदय उमेश ललित भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश बने। राष्ट्रपति दौपदी मुर्मु ने शनिवार को जस्टिस ललित को प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई। जस्टिस एनवी रमणा के सेवानिवृत होने के बाद जस्टिस ललित भारत के नए प्रधान न्यायाधीश बने हैं।

शनिवार को सुबह राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति दौपदी मुर्मु ने जस्टिस उदय उमेश ललित को भारत के प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई। समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कानून मत्री किरेन रिजेजु, पियूष गोयल, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश व अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। जस्टिस ललित ने प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद सबसे पहले अपने पिता के पैर छुए, जो कि शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे।
क्रिमिनल लॉ के स्पेशलिस्ट हैं UU Lalit
जस्टिस उदय उमेश ललित (Justice UU Lalit) क्रिमिनल लॉ के स्पेशलिस्ट हैं। उन्हें 13 अगस्त 2014 को सीधे बार से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। इसके बाद उन्हें मई 2021 में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सभी 2G मामलों में CBI के पब्लिक प्रोसिक्यूटर के रूप में ट्रायल्स में हिस्सा ले चुके हैं। वे दो कार्यकालों के लिए सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
UU Lalit [Hindi] | कैसा रहा है करियर
जस्टिस यूयू ललित महाराष्ट्र के रहने वाले हैं। वह जून 1983 में बार में शामिल हुए थे और 1986 से शीर्ष अदालत में प्रैक्टिस करना शुरू किया। उन्होंने 1986 से 1992 तक पूर्व अटार्नी जनरल, सोली जे. सोराबजी के साथ काम किया। 9 नवंबर 1957 को जन्में जस्टिस ललित जून 1983 में एक वकील के रूप में नामांकित हैं। उन्होंने दिसंबर 1985 तक बाम्बे उच्च न्यायलय में प्रैक्टिस की। जनवरी 1986 से उन्होंने दिल्ली में प्रैक्टिस शुरू कर दी। अप्रैल 2004 में वह सर्वोच्च न्यायालय के कानूनी सेवा समिति के सदस्य बने और 13 अगस्त 2014 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए।
Justice UU Lalit ललित का महाराष्ट्र में हुआ था जन्म
भारत के नए प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित का जन्म 9 नवंबर, 1957 को महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था. वह जून 1983 में महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकित हुए थे. इसके बाद जनवरी 1986 में उन्होंने दिल्ली आने से पहले दिसंबर 1985 तक बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में प्रैक्टिस की थी.
अयोध्या-बाबरी केस से खुद को अलग कर सुर्खियों मे रहे
10 जनवरी 2019 को न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने खुद को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की बेंच से अलग कर सुर्खी बटोरी थी. ऐसा करने के पीछे उन्होंने तर्क दिया था कि करीब 20 साल पहले वह अयोध्या विवाद से जुड़े एक आपराधिक मामले में यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह के वकील रह चुके थे.
1983 से वकालत कर रहे हैं CJI ललित
जस्टिस उदय उमेश ललित का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर में 9 नवंबर 1957 को हुआ. 1983 में वे बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा से जुड़े और वकालत की प्रैक्टिस शुरू की. साल 1985 में वे दिल्ली शिफ्ट कर गए और यहां वकालत करने लग गए. साल 1992 में वे सुप्रीम कोर्ट के वकील के रूप में क्वॉलिफाई किए. अप्रैल 2004 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील के रूप में नामित किया गया.
2014 में कॉलेजियम की मदद से सुप्रीम कोर्ट के जज बने
साल 2014 में कॉलेजियम की मदद से उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज चुन लिया गया. उस समय कॉलेजियम की अध्यक्षता तत्कालीन चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा कर रहे थे. 13 अगस्त 2014 को वे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए. वे देश के ऐसे छठे वकील बने जिन्हें सीधा सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. 10 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें देश के 49वें चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त किया. आज 27 अगस्त को उन्होंने गोपनीयता की शपथ ली और कार्यभार संभाला.
UU Lalit [Hindi] | न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ी हैं चार पीढ़ियां
भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस यूयू ललित पर भले ही न्यायाधीशों की नियुक्ति से लेकर महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्नों जैसी चुनौतियां हों, लेकिन उनकी न्यायिक विरासत का अनुभव भी उनके पास होगा। दरअसल, चार पीढ़ियों से यूयू ललित का परिवार न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। जस्टिस ललित के दादा रंगनाथ ललित आजादी से पहले सोलापुर में एक वकील थे।
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जस्टिस यूयू ललित के 90 वर्षीय पिता उमेश रंगनाथ ललित भी एक पेशेवर वकील रह चुके हैं। बाद में उन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। इसके अलावा जस्टिस ललित के दो बेटे हर्षद और श्रेयश, जिन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। हालांकि, बाद में श्रेयश ललित ने भी कानून की ओर रुख किया। उनकी पत्नी रवीना भी वकील हैं।
कार्ति चिदंबरम मामले में आयकर विभाग को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम और उनकी पत्नी के खिलाफ सात करोड़ रुपये के कर चोरी के मामले में आयकर विभाग को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब देने को कहा है। इस साल मई में मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले को निचली अदालत से विशेष अदालत में भेजे जाने के खिलाफ कार्ति और उनकी पत्नी की याचिका खारिज कर दी थी। दोनों ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी ही।
रमना ने की थी नाम की सिफारिश
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया(CJI) एनवी रमना 26 अगस्त को अपने पद से रिटायर हो गए। एनवी रमना, एसए बोबडे के बाद 24 अप्रैल 2021 को देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश बने थे। रमना ने कानून और न्याय मंत्रालय को अपना उत्तराधिकारी के रूप में यूयू ललित के नाम की सिफारिश की थी।
ऐसा रहा है चीफ जस्टिस यूयू ललित का अब तक का सफर
- 9 नवंबर 1957 को जन्मे जस्टिस ललित ने जून 1983 में वकील के तौर पर नामांकन कराया और दिसंबर 1985 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस किया. इसके बाद जनवरी 1986 में वह दिल्ली शिफ्ट हो गए और अप्रैल 2004 में वह सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट बने. सुप्रीम कोर्ट में 13 अगस्त 2014 को वह सुप्रीम कोर्ट में जज बने.
- 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले के ट्रॉयल में वह सीबीआई की तरफ से विशेष पब्लिक प्रोसेक्यूटर थे.
- एक वकील के तौर पर वे सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति के कथित फर्जी एनकाउंटर केस में अमित शाह की पैरवी भी कर चुके हैं.
- जस्टिस के तौर पर उन्होंने कई बड़े फैसले दिए जिसमें अगस्त 2017 में ट्रिपल तलाक को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने का फैसला शामिल है. यह फैसला 3:2 के बहुमत से पास हुआ था. तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर इस फैसले को छह महीने तक होल्ड करने के पक्ष में थे और सरकार से इसे प्रभाव में लाने के लिए कानून बनाने को कहा था. वहीं जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस ललित ने ट्रिपल तलाक के इस्तेमाल को संविधान का उल्लंघन बताया. जस्टिस खेहर, जस्टिस जोसेफ और जस्टिस नरीमन रिटायर हो चुके हैं.
- जनवरी 2019 में उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. इस मामले में मुस्लिम पार्टी की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा था कि इससे जुड़े एक मामले में वर्ष 1997 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए वकील के तौर पर वह पेश हुए थे. इस वजह से ही जनवरी 2019 में उन्होंने इस मामले से खुद को अलग कर लिया था.
कम कार्यकाल वाले सीजेआई की सूची
- 25 नवंबर 1991 से 12 दिसंबर 1991 तक प्रधान न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति कमल नारायण सिंह का कार्यकाल 18 दिन था.
- दो मई 2004 से 31 मई 2004 तक सीजेआई के रूप में सेवाएं देने वाले न्यायमूर्ति एस राजेंद्र बाबू का कार्यकाल 30 दिन का था.
- न्यायमूर्ति जे सी शाह 36 दिन तक प्रधान न्यायाधीश रहे. उनका कार्यकाल 17 दिसंबर 1970 से 21 जनवरी 1971 तक था.
- न्यायमूर्ति जी बी पटनायक आठ नंवबर 2002 से 18 दिसंबर 2002 तक सीजेआई रहे. प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल 41 दिन का था.
- न्यायमूर्ति एल एम शर्मा का कार्यकाल 86 दिन रहा. वह 18 नवंबर 1992 से 11 फरवरी 1993 तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर थे.
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